Saturday 15 July 2017

ग़ज़ल

                            'Gazal '

अमावस कि इस रात में बाहर से ज़्यादा अंदर अँधेरा है
दिल में मेरे मेरी धड़कनों का नहीं तेरी यादों का बसेरा है ।।

मन आँगन पर काली बदली छितरायी ,आँसुओं की बरसात है
विरह की इस रात का लगता नहीं अब कोई सवेरा है !!

सोचा था मोहब्बत पाके तेरी जो बिखरा बिखरा हूँ सँवर जाऊँगा !!
मगर मोहब्बत निभाई कुछ यूँ तूने दिल के हर ज़ख़्म पे अब नाम तेरा है ।।

सारी रस्में ,सारी क़समें ,सारे वादे एक एक कर तोड़े तूने
बात आयी बेवफ़ाई की तो बड़ी मासूमियत से बोले तुम सारा क़सूर तेरा है ।।

Dr.sanjay yadav 


4 comments:

  1. अपनी रचना और अपनी कलम पर पूरा विश्वाश और बेहद प्यार को दर्शाती रचना बहुत ही खूबसूरत अहसास |

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  2. उम्मीदें और उन उम्मीदों का परिणाम ....प्रेम की कहानी बन जाती है!!

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  3. धन्यवाद जी प्रभात जी और संजय जी

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  4. वाह...
    बेहतरीन ग़ज़ल
    सादर

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