Saturday, 24 June 2017

उम्मीद

             उम्मीद 


एक ख़्वाब टूटा है ..दुजा ख़्वाब तुम फिर कोई सजाना 
इम्तिहान की इस घड़ी में हिम्मत कहीं तुम हार मत जाना 

बिजलियाँ गिरा दी जो उसने आशियाने पर ...आशियाना ही टूटा है
दिल में ज़िद ज़िंदा रखना ....आशियाना तुम फिर वही बनाना 

बीच भँवर में किसी दिन कश्ती यूँ फँस जाये..की पतवार भी हाथ में टूटी हो 
होंसलों को बना के पतवार तू कश्ती को किनारे तक ले जाना 

अंधेरे बन दीवार खड़े हो ..रास्ते में पत्थर ही पत्थर पड़े हो 
अंतरमन की रोशनी से कर उजाला ...पत्थरों को काट रास्ता तू बनाते जाना

Dr.sanjay yadav

Friday, 16 June 2017

उम्मीद

                                उम्मीद


सूरज भी जब रोशनी का मोहताज होने लगे
चाँद भी सितारों की आड़ में जा खोने लगे
जुगनू भी जलते जलते जब बुझने लगे
ख़्वाब आ पलकों तक जब दम तोड़ने लगे
तुम जलती  रहना ....तुम जलती रहना
उम्मीदों का ले दीपक हाथ में तुम चलती रहना

साँसों की डोर जब टूटने के कगार पे हो
चौपाल की चर्चा जीत पे नहीं तुम्हारी हार पे हो
ज़माने की नज़र जब मौक़ापरस्ती वार पे हो
कश्ती को बचाने की सारी ज़िम्मेदारी जब पतवार पे हो
तुम लड़ती रहना ...तुम लड़ती रहना
उम्मीदों का ले दीपक हाथ में तुम चलती रहना

तारीफ़ के चर्चे नहीं ...कानो में रोज़ ज़माने के ताने हो
चलने के नहीं ....रुकने के दिल में नित रोज़ नए बहाने हो
नज़रों के सामने बस मंज़िल की मुश्किल के ही पैमाने हो
भटकाने को पथ से राहों में सजे मयखाने हो
तुम सम्हलती रहना ...तुम सम्हलती  रहना
उम्मीदों का ले दीपक हाथ में तुम चलती रहना

Dr.sanjay yadav


Saturday, 10 June 2017

रोती बहन लिखूँ या बिलखती माँ लिखूँ
लाचार बेटी लिखूँ या सिसकतीं नन्ही जाँ लिखूँ
क़लम से आवेश लिखूँ या बहते  नयन लिखूँ....
तुम्हें दरिंदा ना लिखूँ तो बताओ कैसे इंसान लिखूँ .....

नारी की जहाँ पूजा होती थी ...कहाँ गया वो देश ....
पर औरत को आदर से देखा जाता था कहाँ मिट गया वो परिवेश ......
पश्च्त्या संस्कृति को कोई दोष नहीं ...हम ही अपने संस्कार भूल चुके ......
ज़ुल्म की इंतिहा तुम्हारी होती है ....दोषी ठहरा देते हो औरत का वेश .....


बीच सड़क पे नीलाम होती इज़्ज़त लिखूँ या बंद कमरों का रुदन गान लिखूँ ....
तुम्हें दरिंदा ना लिखूँ तो बताओ कैसे इंसान लिखूँ .....

हर सड़क ...हर गली हर मोहल्ले में बस व्यभिचारियों का ही बसेरा है ....
कैसी ये रात हुई है जिसका नज़र ना आता कोई सवेरा है .....
अपनी बहन की इज़्ज़त करते हो ...फिर दूजे की बहन से कैसे खेल जाते हो .....
जिस्म जिस्म है ...रिश्ता रिश्ता है ....फिर चाहे वो तेरा है या मेरा है

कुछ ऐसा मंज़र भी आए ....अपमान ना लिखू बस महिला का सम्मान ही लिखूँ .....
तुम्हें दरिंदा ना लिखूँ तो बताओ कैसे इंसान लिखूँ

Dr.sanjay yadav

Friday, 9 June 2017

हक़ीक़त

                           हक़ीक़त 


फ़ुर्सत नहीं अंदर की ....खिड़की से बाहर झाँक रहा है 
ख़ुद का किरदार कभी न तौला ...हर सखस यहाँ दूजे का किरदार आंक रहा है 

दौर है ये आडंबर का ....दिखावा पहचान बना है ....
कपड़ों में है साज सज्जा ...चरित्र कोने में धूल फाँक रहा है ......

चेहरे की चमक दमक का दौर है ये ....भावों का कोई मोल नहीं .....
दौलत के क़दमों में पसरा ...इंसान इंसानियत की क़ीमत कम आँक रहा है 

हाथ से हाथ तो मिला रहा ...दिल का हाल बताने की फ़ुर्सत नहीं ....
रूह है ज़ख़्मी ...मगर इंसान लिबास पे पेबंद टाँक रहा है 

Dr.sanjay yadav ....

Monday, 5 June 2017

सफलता

                    सफलता 

एक पल को जीने के लिए ना जाने कितने पल खोने पड़ते है 
शिखर की हो अगर अभिलाषा ना जाने कितने घाव संजोने पड़ते है 

नज़र ज़माने की इस ऊँचाई पे है ..मेरे पैर के छालों पे नहीं 
गुमनामी में गुज़ार दिए मैंने जो कई उन सालों पे नहीं 
शिखर को जो छू लिया आज मैंने ...मेरे चर्चे सरे आम है 
ज़ुबान से निकले जिन तीरों को बरसो झेला है मैंने दिल पे उन सवालों पे नहीं ........

फूलों पे चलने के लिए पथ के काँटे चुनने पड़ते है 
शिखर की हो अगर अभिलाषा ना जाने कितने घाव संजोने पड़ते है 

भाग्य के उन बेरंग पन्नो को पसीने की स्याही से भरना होता है 
जीने की लिए ज़माने के दिलों दिमाग़ में ..अकेले में मरना होता है 
बड़ी निष्ठुर निर्दयी होती है ...यूँ ही नहीं क़दम चूमतीं ....
करने को रोशन जीवन जुगनू कि तरह रात भर जलना होता है 

बैठ किनारे कुछ नहीं मिलता ...गहराई में उतर मोती बिनने पड़ते है 
एक पल को जीने के लिए ना जाने कितने पल खोने पड़ते है 

Dr.sanjay yadav