Monday 5 June 2017

सफलता

                    सफलता 

एक पल को जीने के लिए ना जाने कितने पल खोने पड़ते है 
शिखर की हो अगर अभिलाषा ना जाने कितने घाव संजोने पड़ते है 

नज़र ज़माने की इस ऊँचाई पे है ..मेरे पैर के छालों पे नहीं 
गुमनामी में गुज़ार दिए मैंने जो कई उन सालों पे नहीं 
शिखर को जो छू लिया आज मैंने ...मेरे चर्चे सरे आम है 
ज़ुबान से निकले जिन तीरों को बरसो झेला है मैंने दिल पे उन सवालों पे नहीं ........

फूलों पे चलने के लिए पथ के काँटे चुनने पड़ते है 
शिखर की हो अगर अभिलाषा ना जाने कितने घाव संजोने पड़ते है 

भाग्य के उन बेरंग पन्नो को पसीने की स्याही से भरना होता है 
जीने की लिए ज़माने के दिलों दिमाग़ में ..अकेले में मरना होता है 
बड़ी निष्ठुर निर्दयी होती है ...यूँ ही नहीं क़दम चूमतीं ....
करने को रोशन जीवन जुगनू कि तरह रात भर जलना होता है 

बैठ किनारे कुछ नहीं मिलता ...गहराई में उतर मोती बिनने पड़ते है 
एक पल को जीने के लिए ना जाने कितने पल खोने पड़ते है 

Dr.sanjay yadav 

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