“महाभारत”
गांडीव उठाओ पार्थ !!
महाभारत फिर से सम्मुख है ,
दिशा दिशा कौरव खड़े हैं ,
पांडव फिर से गये छले हैं !!
लाक्षागृह नित रोज़ रचे जा रहें हैं,
षड्यंत्रों के जाल बुने जा रहे है ,
भीष्म पितामह अब भी कहाँ बोल पाते है !!
सत्ता मोह में अंधे धृतराष्ट्र कहाँ आँखें खोल पाते है!!
पाँचाली फिर से छली गयी है,
राजदरबारों की रज़ामंदी भी ली गयी है,
गली गली कौरव शासन है !
कोने कोने बैठा दुशासन है!!
सच्चाई कहीं अज्ञातवास में बंदी है ,
झूठ का सोना झूठ की ही चाँदी है !
विदुर नीति कहीं कोने में धूल फाँक रही ,
सत्ता जनता की ताक़त कम आंक रही ,
अहंकार दुर्योधन का फिर से परवान चढ़ा है ,
अधिकार तुम्हारा शकुनि पाशों में मूर्शित पड़ा है !!
एकलव्य अब भी पराजित है
द्रोण के छल से ,
अँगूठे काटे जा रहे हैं
कभी रसूख़ ,कभी सत्ता तो कभी धनबल से !!
अधिकारों से वंचित कर्ण
आज भी बाग़ी है ,
अत्याचारों से तुम्हारे ,
कभी विद्रोही तो कभी अधर्म का
पथगामी है !!
जाती ,धर्म ,अशिक्षा ,बेरोज़गारी ,आरक्षण के
घेरों से बुने चक्रव्यूह में
घायल फिर से अभिमन्यु है !!
गांडीव उठाओ पार्थ!!
मन पे पड़ी भ्रम की इन परतों को
हटाने को
स्वयं को ही लड़ना होगा !
अब कोई उद्दव नहि आने वाले है !!
कमज़ोरी और अज्ञान के इस तिमीर को हरने,
अब कोई माधव नहि आने वाले है !!!
गांडीव उठाओ पार्थ !!
डॉक्टर संजय यादव